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स्टेशनरी

आपके वॉलेटमे ईस वक्त एक-दो कार्ड तो होंगे ही। कभी एसा भी हुआ होगा की उनमे से एकाद कार्ड एसा होगा जिसकी आपको जरूरत नहि है, लेकिन उसका डिझाईन ही कुछ ऐसा है की आपने उस कार्ड को संभाल कर रखा है! आपका बिसनस कार्ड या पर्सनल विझीटींग कार्ड भी ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन बेहद जरूरी बात यह है की वो आपके बिझनसमें बढ़ावा करे ऐसे सिम्पल और युनिक हो। कलर आप कुछ ब्लेक एन्ड व्हाईट  डिझाईन देख लें, आप समझ जाओगे की कलर का युझ कितना और कहां होना चाहिए! फोन्टस फोन्ट्स एसे युझ होने चाहिए जो सिम्पल हो. लेटरस्पेसींग सही हो। आपके लोगो के साथ मेच करते हो। सीर्फ हेडलाईन. टेगलाईन जैसे कुछ जगह पर अलग फोन्ट युझ किए जा सकते है! मटीरियल विझीटींग कार्ड को टेक्ष्चर पेपर, प्लास्टिक, क्लॉथ जैसे मटीरियल पर भी प्रीन्ट किया जा सकता है। जो मटेरियल आपके बिझनस को सुट करे। एलिमेन्ट एक छोटेसे कार्ड में आप कितनी डिटेल्स रखोगे? कितनी मेटर होगी? क्या टॅगलाईन होगी? लोगो कितना बडा रखना है? यह सब आप अपने डिझाईनर पर छोड दें। आप सिर्फ अपनी रिक्वायरमेन्ट उसे बताए। उसे पता है की कार्डमें कितनी चीज़े होनी चाहिए। प्
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डिझाईन

सच तो यह है की डिझाईनींग एक सायन्स है। पीछले देढसो साल से ईसकी रिसर्च हो रही है। नए एक्स्परीमेन्ट्स हो रहे है। लेकिन चूंकी हम टोटली बिसनेस ओरीएन्टेड है, हमे ईससे कुछ लेना देना नहि होता। हम चाहते है की डिझाईनींग हमारे बिझनस को बढ़ावा दे, बस। ईसलिये हम एक्स्परीमेन्ट का रीस्क कम ही लेतें है। ज्यादातर एक्परीमेन्ट जो भारतमें होते है उसे विदेशी कंपनी ही करती है। अब देखते है कि डिझाईन क्या है। ये रही सबकी फेवरेट ऐशवर्या राय। सोचीये अगर उसकी आंखे, होठ अगर सही ढंग से सही जगह पर न लगे हुए होते... तो वो कुछ ऐसी दीखती! ईसी प्रकार अगर डिझाईन के एलिमेन्ट्स अगर गलत प्रोपोर्शन, गलत जगह लगाए जाए तो पुरा डिझाईन बेहुदा बन जाता है। हाला कि ऐशवर्या की खुबसुरती तो सभी पहेचान जायेंगी लेकिन डिझाईन के बारे मे कोई ईतना नहि सोचेगा! सभी अपने अपने हिसाब से अपनी पसंद की डिझाईन बनवा लेंगे। बेलेन्स, कोन्ट्रास्ट, हार्मनी, प्रोपोर्शन, प्लेसमेन्ट आदि ग्राफिक डिझाईन के रुल्स को जोड कर कर सही कोन्सेप्ट/डिझाईन तैयार किया जाता है। अगर डिझाईन फिर भी काम नहि करता तो यही रुल्स को उल्टा कर के तोड के काम किया जाता है।

लोगो

लोगो के बारे में तो सभी जानते ही होंगे। अगले पांच वर्षो मे लोगोका रूप बदलने वाला है। भारतमें ईस वक्त 3D लोगो, जेली ईफेक्ट लोगो का चलन है। हाला की इस प्रकार के लोगो कोम्युटर या टीवी स्कीन पर देख्नने पर ही अच्छे लगते है। जब की लोगो प्रींट मिडियामें ही ज़्यादा उपयोग में आता है । (विझेटींग कार्ड, बेनर, पोस्टर, न्युझ पेपर एड ईत्यादि ) और वहां ऐसे लोगो का प्रभाव बहुत कम हो जाता है। (Courtesy- nicegfx.com ) ग्राफिक डिझाईन, लोगो डिझाईन, पोस्टर, बेनर आदि के नाम सुनने पर ही कोम्युटर दिमाग़में आ जाता है। जब की १८वीं सदी से ही ग्राफिक डिझाईन युरोपके देशोमें शुरू हो गया था। प्राचीन मिस्र में भी ईनके नमुने पाए गए है! जहां तक भारत की बात है यहां बहुत देर के बाद लोगो, ग्राफिक डिझाईन की महत्ता नज़्रर आई। दुनिया के बेस्ट लोगो, डिझाईन पहेले हाथ से ही तैयार होतें है। लोगो आपके बिझनेस एवं पर्स्नालिटी को दिखाता है। देखनेवालों के मनमें वह आपके बिझनेसकी एक छबी सी बना देता है। ओर कंपनी से आपकी कंपनी को अलग दिखाता है। लेकिन आपको जान कर आश्चर्यं होगा की लोगो आपके लिये है ही नहि! लोगो आपकी टार्गेट कस्